आधुनिक संदर्भ में शिक्षा का अर्थ-संकेत, मानव की अन्तर्निहित क्षमताओं का प्रकटीकरण है। सूचनाओं का मस्तिष्क में ठूँसना भर शिक्षा नहीं है। हमारी मान्यता है कि हमारे भीतर परम सत्य विद्यमान है, उसी परम सत्य की अनुभूति एवं अभिव्यक्ति हमारी शिक्षा प्रणाली का मूल उद्देश्य होना चाहिए।
इन्हीं विचारों से प्रेरित होकर गुरु गोरक्षनाथ की तपोभूमि एवं पुण्य सलिला राप्ती (प्राचीन अचिरावती) द्वारा अभिसिंचित पावन भूमि गोरखपुर में सन् 1952 में सरस्वती शिशु मन्दिर योजना का प्रादुर्भाव हुआ। जिसका व्यापक विकास विद्याभारती के रूप में अखिल भारतीय स्तर पर हो गया।
व्यक्ति निर्माण में संस्कारों का बड़ा महत्त्व है। संस्कार बालक अपने वातावारण से प्राप्त करता है। उचित संस्कार हेतु बालक को अधिक से अधिक समय तक उसी संस्कारमय वातावरण में रहना होगा। इन्हीं विचारों से प्रेरित होकर एवं आप सबके स्नेह एवं सहयोग के बल पर गोरखपुर में सरस्वती शिशु मन्दिर वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, सूर्यकुण्ड में सन् 1986 में छात्रावास की स्थापना की गई। पंचपदीय भारतीय शिक्षा प्रणाली से चलने वाला यह छात्रावास जनपद ही नहीं अपितु प्रदेश के श्रेष्ठ छात्रावसों तथा आवासीय विद्यालयों की अग्रिम पंक्ति में खड़ा है तथा निरन्तर विकास के पथ पर अग्रसर है।
शिक्षा उस व्यवहार का नाम है जो बालक के जीवन एवं आचरण में सकारात्मक परिवर्तन लाती है। सर्वांगीण शिक्षा का उद्देश्य बालक की शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक विकास करना है। अपना छात्रावास इसी कड़ी से जुड़ा छात्रों का आधुनिक सुविधा के साथ संस्कारक्षम वातावरण में उत्तम शिक्षा देने वाला अनुपम संस्थान है। यहाँ पर समस्त कार्यक्रम संस्कार योजना से संचालित होते हैं। छात्रों के प्रातः जागरण से लेकर रात्रि शयन तक प्रातःस्मरण, प्रार्थना, आचार्य अभिवादन, खेलकूद, शाखा, स्वाध्याय, भोजन, आरती, भजन-कीर्तन, महापुरुषों की जयन्तियाँ, पर्व एवं त्योहार आदि दिनचर्या के सभी अंगों में संस्कार का व्यापक परिदृश्य लक्षित होता है।
यह छात्रावास गोरखपुर रेलवे स्टेशन से 5 किलोमीटर पश्चिम सूर्यकुण्ड रेलवे क्रासिंग से 1 किलोमीटर उत्तर दिशा में (बिलन्दपुर खत्ता) नेताजी सुभाषचन्द्र बोस नगर कालोनी में स्थित है।
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